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दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
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सूत्र :रूप-रसगन्धस्पर्शाः संख्याः परिमाणानि पृथक्त्वं संयोगविभागौ परत्वापरत्वे बुद्धयः सुखदुःखे इच्छाद्वेषौ प्रयत्नाश्च गुणाः 1/1/6
सूत्र संख्या :6

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : रूप, रस, गन्ध,स्पर्श, संख्या परिमाण, पृथकत्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व बुद्धि, सुख-दुःख इच्छा द्वेष, प्रयत्न, गुरूत्व, द्रव्त्व स्नेह, संस्कार, धर्म अधर्म और शब्द। इनमें प्रयत्न तक 17 सूत्र में बतलाये गए हैं, और शेष 7 ‘‘च’’ से बतलाए हैं ये चैबीसों गुण नव द्रव्यों में रहते हैं इनमें से रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, विभाग, परत्व, अपरत्व, गुरूत्व, और संस्कार ये विकशेषतया विख्यात गुण हैं।

व्याख्या :
प्रश्न- रूप किसे कहते हैं? उत्तर- जो आंख से दीखे उसको रूप कहते हैं। वह काला, पीला, श्वेत और हरा नाना प्रकार के हैं। प्रश्न- रस किसको कहते हैं? उत्तर- जिस गुण का रसना इन्द्रिय से अनुभव हो वह रस है यथा-खट्टा, मीठा खारी आदि। प्रश्न- गन्ध किसको कहते हैं? उत्तर- जिस गुण का नाक से अनुभव हो वह गुण गन्ध है। वह दो प्रकार का है-1-सुगन्ध और 2-दुर्गन्ध। प्रश्न- स्पर्श किसको कहते हैं? उत्तर- जिसका त्वचा के द्वारा अनुभव किया जावे। परन्तु स्पर्श गर्म और सर्द से नितान्त पृथक् होता हैं संयोग होने पर शीत उष्ण प्रतीत होता हैः- प्रश्न- संख्या किसे कहते हैं? उत्तर- एक से लेकर अरबों आदि तक संख्या कहाती है। प्रश्न- गुरूत्व किसको कहते हैं? उत्तर- जिसके कारण वस्तु भूमि पर गिरती है वही गुरूत्व है। यह गुरूत्व पृथिवी की आकर्षण शक्ति से उत्पन्न होता है। जब तक एक वस्तु का दूसरी वस्तु के साथ संयोग रहता है तब तक दूसरी वस्तु ओर से भी आकर्षण होने से वस्तु, नहीं गिरती। जब संयोग नहीं रहता तब गुरूत्व के कारण वस्तु नीचे गिर पड़ती है। प्रश्न- द्रवत्व किसको कहते हैं? उत्तर- किसी वस्तु में बहने के गुण को द्रवत्व कहते हैं। वह द्रवत्व विशेषकर जल में रहता है। प्रश्न- संस्कार किसको कहते हैं? उत्तर- किसी कर्म के करने से जो स्वभाव पड़ता है वह, या जो मन के भीतर कर्म की वासना उत्पन्न हो जाती है, संस्कार कहलाता है। इसी प्रकार और गुणों के भी लक्षण्ण समझ लेने चाहिए। प्रश्न- रूप आदि कितने गुण संयुक्त पदार्थों में रहते हैं, और कितने असंयुक्त पदार्थों में ? उत्तर- रूप रस गन्ध और स्पर्श जिनकी प्रतीति प्राकृतिक इंद्रियों से होती है वे पाकज अर्थात् संयुक्त (संयोगजन्य) के गुण हैं। प्रश्न- पृथक्त्व का अलग क्यों वर्ण किया? उत्तर- संख्या एक-दो और बहुत होने के कारण सन्देह हो सकता था, इस कारण पृथक्त्व अर्थात् सबसे अलग वा एकत्व का वर्णन किया। प्रश्न- परिमाण के साथ बहुवचन क्यों लगाया? उत्तर- श्रण, मध्यम और विभु ये तीन प्रकार के परिमाण होते हैं, और उनसे भी अपेक्षा से छोटा और बड़ा लगा रहता है, इसलिए बहुवचन का प्रयोग किया है परिमाण अनेक हैं। प्रश्न- पृथक्त्व, जो कि प्रत्येक में रहने से बहुत हैं, उसको एक वचन से क्यों कहा? उत्तर- यद्यपि संख्या की तरह पृथक्त्व को भी अनेकों में रहने से, बहुवचन युक्त कहना चाहिए था, तो भी सीमा को बतलाने वाली गुण संख्या से भिन्न है, इस बात को जतलाने के लिए एकवचन का प्रयोग किया है। प्रश्न- संयोग विभाग में द्विवचन क्यों कहा है उत्तर- संयोग अर्थात् मिलना, विभाग अर्थात् अलग होना ये दोनों एक ही कर्म से उत्पन्न होते हैं, अतः द्विवचन से पुकारे गए। प्रश्न- परत्व और अपरत्व में द्विवचन क्यों कहा? उत्तर- परत्व और अपरत्व, ये दोनों सापेक्ष्य होने से एक-दूसरे के सहारे रहते हुए, दिशा, काल और चिन्ह को बताने में प्रयोग किए जाते हैं, अतः द्विवचन से बतलाए गए। प्रश्न- बुद्धि को बहुवचन से क्यों कहा? उत्तर- विद्या और अविद्या के भेद से बुद्धि प्रकार की है, इसलिए बुद्धि के साथ बहुवचन का प्रयोग किया जिससे मनुष्य बुद्धि को एक ही और द्रव्य न समझ लें, किन्तु और बहुत सी समझें। प्रश्न- सुख और दुःख के साथ द्विवचन क्यों दिया? उत्तर- सुख दुःख दोनों वचन हैं और विशेषकर पूर्वजन्म के फलों को प्रकट करते हैं, और ज्ञानी मनष्यों के विचार में सुख भी एक प्रकार का दुःख ही है, इस पर कहीं आगे चलकर विचार होगा, अतः द्विवचन कहे गए हैं। प्रश्न- इच्छा और द्वेष को द्विवचन से क्यों कहा? उत्तर- इच्छा और द्वेष दोनों एक ही कार्य में लगाने का कारण है जिस वस्तु की इच्छा होती है उसको प्राप्त करने की इच्छा और जिससे द्वेष होता है उसको दूर करने का यत्न किया जाता है इस कारण द्विवचन कहा। प्रश्न- प्रयत्न को बहुवचन से क्यों कहा? उत्तर- प्रयत्न बहुत प्रकार का है। कोई पाप का कारण है और कोई पुष्प का, उसमें भी प्रत्येक नाना प्रकार का है, अतः बहुवचन से कहा। प्रश्न- कर्म कितने प्रकार के हैं।