सूत्र :उत्क्षेपणमवक्षेपणमाकुञ्चनं प्रसारणं गमनमिति कर्माणि 1/1/7
सूत्र संख्या :7
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कर्म पांच प्रकार के हैं (1)उत्क्षेपण=ऊपर को जाना या उछलना, (2) अवक्षेपण=नीचे को गिरना, (3) आकुत्र्चन=सुकड़ना, (4) प्रसारण=फैलना, (5) गमन=तिरछा चलना।
व्याख्या :
प्रश्न- क्या घूमना आदि कर्म नहीं है, फिर उनकी चर्चा सूत्र में क्यों नहीं की?
उत्तर- ये सब गमन के अन्तर्गत बता दिए हैं, अतः उनको पृथक नहीं गिना या जो लोग पांच तत्त्वों के स्थान में चार बताते हैं, वा अंग्रजी वालों के समान जो बहुत से तत्त्व बताते हैं वे भूल पर हैं उनको ध्यान रखना चाहिए कि तत्त्व पाँच हैं। और प्रत्येक तत्त्व का एक-एक कर्म एक इंद्रिय है सिसे उनके गुणों का पता लगता है। ऊपर चलला अग्नि का कर्म है और आंख गुणों का अनुभव करने वाली इन्द्रिय है। नीचे गिरना पानी का कर्म है, और रसना उसका अनुभव करने वाली इन्द्रिय है। संकोच अर्थात् सुकड़ना पृथ्वी का कर्म है, नासिक उसको अनुभव करने वाली इन्द्रिय है। फैलना आकाश का कर्म है कान उसको अनुभव करने वाली इन्द्रिय है। बराबर चलना वायु का कर्म है, त्वचा उसको अनुभव करने वाली इन्द्रिय है।
प्रश्न- गमन और कर्म ये दोनों पर्यायवाची शब्द हैं, इसलिए कर्म के चार ही भेद हो सकते हैं। गमन को उसमें सम्मिलित नहीं करना चाहिए।
उत्तर- यद्यपि चलना (गमन) और कर्म पर्यायवाची शब्द हैं, परन्तु उसका पृथक भेद इस कारण माना गया है कि उससे घूमना आदि नाना प्रकार के शेष कर्मों का ग्रहण किया जाता है चलने के भीतर तो घूमना आदि का ग्रहण हो सकता है दूसरे, एक के भीतर सब कर्म नहीं आ सकते।
प्रश्न- निष़्त्रमण और प्रवेश=निकलना और प्रवेश करना भी दो प्रकार के कर्म है उनकी गणना क्यों नहीं कराई?
उत्तर- ये दोनों भी एक ही कर्म हैं। एक घर से निकलकर दूसरे घर में जाना बात ये भी गमन में ही आ जाते हैं।
प्रश्न- उत्क्षेपण आदि को दृष्टान्त के साथ समझाओ।
उत्तर- धान कूटते समय जब मसल ऊपर को जाता है उसे एम्क्षेपण कहते हैं। जब नीचे को जाता है जब अवक्षेपण कहते हैं। जब रूई के बोरे को कल में दबाकर छोटा करते हैं, तो उसको आकुत्र्चन=संकोचन कहते हैं। जब उसी रूई को धुनते समय फैलाते हैं तो उसको प्रसरण कहते हैं। घूमना, चलना, बहना, आदि ये सब गमन कहलाते हैं।
अब आगे उद्देश्य अर्थात् नाम बताकर इन सबका साधर्म्य और वैधर्म्य बताते हैं। ये सब मुमुक्ष के जानने के योग्य हैं।