सूत्र :परिशेषाल्लिङ्गमाकाशस्य 2/1/27
सूत्र संख्या :27
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शब्द गुण है, जिसका किसी न किसी द्रव्य के सहारे रहना आवश्यक है। जब वह स्पर्श वाली मिट्टी, पानी, अग्नि का गुण नहीं, और नहीं मन, दिशा और आत्मा का गुण है, इसलिए नौ द्रव्यां में से जो शेष रहा आकाश उसका गुण मानना पड़ेगा।
व्याख्या :
प्रश्न- क्या प्रमाण है कि शब्द गुण है?
उत्तर- इसलिए कि वह बाह्य किया जाता है और इंद्रियां गुण के अतिरिक्त किसी द्रव्य का ग्रहण करती नहीं, इसलिए यह स्पष्ट है कि शब्द गुण है।
प्रश्न- शब्द नियत्य है वा अन्त्यि?
उत्तर- शब्द अनित्य है।
प्रश्न- विभु होने और सबके साथ सम्बन्ध रखने वाले आकश का गुण शब्द अनित्य कैसे हो सकता है?
उत्तर- जिस प्रकार ज्ञान आदि विभु आत्मा के गुण अनित्य होते हैं, उसी प्रकार शब्द भी अनित्य हो सकता है। यहां ज्ञान से बाह्य ज्ञान को समझना चाहिए।