सूत्र :तदनुविधानादेकपृथक्त्वं चेति इति प्रथम आह्निकः 2/1/31
सूत्र संख्या :31
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जबकि आकाश में विभु होने से सबसे बड़ा होना पाया जाता है, क्योंकि वह शब्द का समवाय कारण है, इसलिए उसमें संयोग और विभाग हो सकता है, यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि फिर उसको सबसे पृथक् क्यों कहा। उत्तर में कहते हैं कि आकाश को सत्ता के समान प्रत्येक में रहने पर भी एक कहा है और यह निय है कि जो एक होगा, वह दूसरो से पृथक् भी होगा, अभिप्राय यह है कि किसी वस्तु को एक कहने से ही उसका पृथक् होना सिद्ध होता है। सूत्र में जो इति शब्द आया है वह आन्हिक की समाप्ति का सूचक है, इस आन्हिक में पृथ्वी, पानी अग्नि, वायु और आकाश आदि का लक्षण कहा और प्रसंग वश ईश्वर की सत्ता भी सिद्ध की।