सूत्र :संयोगादभावः कर्मणः 2/1/23
सूत्र संख्या :23
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कर्म का आकाश निमित्त कारण भी नहीं हो सकता, और नहीं कर्म, आकाश का समवाय, और निमित्त कारण हो सकता है, इसलिए आकाश का अनुमान कर्म से नहीं हो सकता। क्योंकि न तो कार्य कारण सम्बन्ध ही सिद्ध होता है। अगर कहो कि निमित्त कारण नहीं ! क्योंकि जो जिसके बिना न और उसके होने से हो, वही उसका कारण होता है और कोई कर्म आकाश के बिना हो ही नहीं सकता इसलिए आकाश को कारण मानना चाहिए लेकिन कारण वह होता है जो कार्यसे पूर्व होकर भी उसके लिए नियत हो। आकाश सबके साथ सम्बन्ध रखने से किसी का नियत कारण नहीं हो सकता। क्योंकि व्यापक होने से उसका कहीं अभाव नहीं। इसलिए चाहे कार्य हो या न हो, आकाश रहेगा। और केवल आकाश से कोई नहीं उत्पन्न हो सकता। इसलिए आकाश के कारण होने या जिसमें कर्म वह द्रव्य नहीं मानते किन्तु उसका आधार बतलाते हैं। यदि आकाश न हो तो काई मूर्तिमान पदार्थ किसी में कर्म करेगा कहां से! निकल कर कहां जाएगा? जबकि प्रतिवादी ने भी आकाश की सत्ता से इन्कार नहीं किया किन्तु उसको सर्व व्यापक माना है, केवल कर्म से उसके कारण कार्य भाव होने का निषेष किया है, इसलिए वाद-विवाद को अधिक न बढ़ाकर, आकाश के गुण शब्द को बतलाते हैं।