सूत्र :शब्दलिङ्गा-विशेषाद्विशेषलिङ्गाभावाच्च 2/1/30
सूत्र संख्या :30
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस सत्ता का ज्ञान बि ना किसी गुण के होता है, उसकी तरह आकाश का एक होना किस प्रकार सिद्ध हो सकता है। इसके उत्तर में कहते हैं-
व्याख्या :
जबकि शब्द ही आकाश का लिंग है तो उसके सामान्य होने से कोई विशेष लिंग होता तो आकाश से पृथक करता परन्तु शब्द में कोई भेद विशेषता करने वाला नहीं इसलिए आकाश को एक ही मानना पड़ेगा, जब तक कि कोई दूसरा विशेष लिंग एक आकाश को दूसरे आकाश से भेद करने वाला सिद्ध न हा?
प्रश्न- जिस प्रकार आत्मा में सामान्य गुण ज्ञान है, परन्तु आत्माएं अनेक हैं, तो क्या शब्द गुण एक होने से आकाश अनेक नहीं हो सकते?
उत्तर- आत्मा में यद्यपि ज्ञान गुण सामान्य है, परन्तु सुख-दुःख की व्यावस्था से उनका बहुत होना सिद्ध है, जिस तरह ज्ञान में सुख का ज्ञान और दुःख का ज्ञान हो सकता है अर्थात् काई आत्मा सुख का अनुभव कोई आत्मा दुःख का अनुभव करता है, ऐसे ही शब्द में कोई विशेषता नहीं। इसलिए आकाश एक ही है।