सूत्र :परत्र समवाया-त्प्रत्यक्षत्वाच्च नात्मगुणो न मनोगुणः 2/1/26
सूत्र संख्या :26
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शब्द, आत्मा और मन का गुण नहीं है, इस पर विचार करते हैं कि यदि शब्द आत्मा का गुण होता तो जिस प्रकार कहा जाता है कि ‘‘मैं’’ दुःखी चाहता हूं इसी प्रकार मैं बजता हूं, मैं शब्द वाला हूं, इस प्रकार का ज्ञान भी होता, किन्तु ऐसा ज्ञान कभी नहीं होता। ऐसा तो कहा जाता है कि शंक बजता है, बीन बजती है!
व्याख्या :
प्रश्न- शब्द के आत्मा का गुण न होने में क्या प्रमाण है?
उत्तर- इसलिए कि शब्द बाह्य इंद्रियों से ग्रहण किया जाता है, इसलिए वह आत्मा का गुण नहीं हो सकता। यदि शब्द आत्मा ही का गुण होता तो बहरे भी सुन सकते। शब्द, आत्मा और मन का गुण नहीं इसलिए बाह्य इंद्रियों से सुना जाता है।
प्रश्न- क्या कारण है कि शब्द को मन का गुण न माना जावे।
उत्तर- शब्द का प्रत्यक्ष कान से होता है, इसलिए प्रत्यक्ष होने से मन का गुण नहीं। किन्तु प्रत्यक्ष बतलाने से यह सूचित कर दिया कि वह दिशा और काल का भी गुण नहीं।
प्रश्न- शब्द पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, दिशा, काल और मन का गुण नहीं तो फिर किसका गुण है। इसका उत्तर महात्मा कणाद जी देते हैं