सूत्र :व्यवस्थितः पृथिव्यां गन्धः 2/2/2
सूत्र संख्या :2
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पृथ्वी, का स्वाभाविक गुण, जो उसकी दूसरे द्रव्यों से पृथक करता है वह गन्ध है। शेष गुण तो दूसरों के निमित्त से पाये जाते हैं। यह पृथ्वी अकेली मिट्टी के परमाणुओं का ही संघात नहीं हैं किन्तु उसमें भाष्य, आग्नेय और वायव्य-पानी आग और वायु के है, अर्थात् वायु का स्पर्श, अग्नि का रूप और जल का रस भी, इसमें अपने गुण के अतिरिक्त पाया जात हजै। पांच गुणों और आठ द्रव्यों से पृथ्वी के गुण को पृथक् करने वाला, गन्ध ही गन्ध है।