सूत्र :कारणान्तरा-नुकॢप्तिवैधर्म्याच्च 2/1/22
सूत्र संख्या :22
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : आकाश कर्म क असमवाय कारण भी नहीं हो सकता, क्योंकि द्रव्य असमवाय कारण नहींहो सकता, प्रत्युत संयोग गुण असमवाय कारण होता है। इन दो सूत्रों का अभिप्राय यह है कि ज आकाश निकलने और प्रवेश होने आदि दोनों प्रकार का कारण नहीं तो उनसे आकाश को अनुमान कैसे हो सकता है? क्योंकि उनका आकाश के साथ कारण कार्य का सम्बन्ध नहीं है, और अनुमान या तो कारण का कार्य से होता है, या कार्य कारण से। यदि कोई कहे कि आकाश कर्म का निमित्त कारण है, तो तो भी ठभ्क नहीं। उसका प्रतिवाद अगले सूत्रसे करते है।