सूत्र :कार्यान्तराप्रादुर्भावाच्च शब्दः स्पर्शवतामगुणः 2/1/25
सूत्र संख्या :25
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जबकि शब्द वांसुरी, शंख और वीन आदि कार्यों से उत्पन्न होता है, इसलिए वह कारण के गुण के अनुसार ही होता है। जैसा बाजा होता है वैसा ही शब्द भी होता है यदि ऐसा हो कि शब्द उनका कार्य हो, तो जैसे तारों के मिलने से कपड़ा बन जाता है या दो कपालों से मिलकर घड़ा बनता है, वैसे ही समान जातीय परमाणुओं के जिलने से रूप, रस आदि के उपरान्त घट आदि का प्रत्यक्ष होता है, ऐसे ही बीन, सितार आदि ऐसे अवयव हैं कुछ भी शब्द नहीं, शब्द की उत्पत्ति देखते है, परन्तु रूप रहित तार और कपालों से घट आदि की उत्पत्ति नहीं देखते, इसलिए यदि शब्द स्पर्श वालों का गुण होता, अर्थात् मिट्टी, पानी, आग और वायु जिनका स्पशसे ज्ञान होता है, ऐसे द्रव्यों का गुण होता तो उसमें तीव्र से तीव्र और मन्द से मन्द होना न पाया जाता। इसलिए वह स्पर्श करने योग्य द्रव्य का गुण नहीं। आगे और बतलाते हैं-