सूत्र :निष्क्रमणं प्रवेशन-मित्याकाशस्य लिङ्गम् 2/1/20
सूत्र संख्या :20
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : आकाश की विद्यमानता का लिंग निष्कमण और प्रवेशन निकलना और घुसना है क्योंकि दिवाल आदि होती है वहां से कोई मनुष्य प्रवेश करना नहीं चाहता। प्रत्युत छान आदि से जहां-जहां पर आकाश होता है। वहीं से निकलता है और जहां से निकलता है वहां पर भी आकाश को छोड़ता है जहां तक आकाश होता है वहीं तक जा सकता है।
व्याख्या :
प्रश्न- आकाश का होना असम्भव है, क्योंकि वायु, अग्नि जल, और पृथ्वी के परमाणुओं से सारी जगह घिरी हुई है।
उत्तर- यह विचार ठीक नहीं। क्योंकि यदि सारी जगह भी होती, कही खाली नहीं होती तो चीजों में सुकड़ना नहीं पाया जाता क्योंकि सुकड़ने की अवस्था में आकाश में परमाणु भरकर द्रव पदार्थ को ठोस बना देते हैं, यहां तक कि प्रत्येक ठोस से ठोस पदार्थ में आकाश की विद्यमानता पाई जाती है, जिसका प्रमाण यह है कि लोहे से गर्मी पार हो जाती हैं, पीतल से पार हो जाती है, सोने से पास हो जाती है, यहां तक कि प्रत्येक ठोस पदार्थ, पदार्थ में अग्नि के परमाणुओं के प्रवेश करने के लिए आकाशहोना पाया जाता है। आशय से ही आकाश का होना सिद्ध होता है। निष्कमण और प्रवेशन केवल उदाहरणार्थ बतलाया है। इस पर प्रतिपक्षी शंका करता है। कि-