सूत्र :प्रत्यक्षप्रवृत्तत्वात्संज्ञाकर्मणः 2/1/19
सूत्र संख्या :19
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो जिस वस्तु का ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण से करता है वही उसका नाम रख सकता है, वही उस प्रकार की वस्तु बना सकता है। मोक्ष इत्यादि का मनुष्यों को प्रत्यक्ष से ज्ञान नहीं होता, इसलिए जिसने उनका प्रत्यक्ष वहीं उनके नाम रख सकता हैं, और वही उनके साधन भी बतला सकता है, इसलिए मोक्ष आदि अप्रत्यक्ष पदार्थों के नाम और उनके साधनों का वर्णन हमसे अधिक योग्य ऋषियों और सर्वज्ञ ईश्वर की सत्ता का चिह्न है। क्योंकि हम दुनिया में देखते हैं कि प्रथम हम एक चीज को पैदा करके उसके गुणों का ज्ञान प्राप्त करते हैं, फिर उसका नाम उसके गुणों के अनुसार रखते हैं। इसलिए प्रत्येक का नाम रखना ईश्वर के नियम के साथ सम्बन्ध रखता है। यह लेख यौकिगक नामों के लिए है। रूढ़ि शब्द जो बिना गुणों के सर्व साधारण बोलते हैं, वह पृथक हैं। जिस प्रकार की औषध को ले के दांतों के अनुकूल होने से, सांप को मारती है, इस प्रकार की बातों को ज्ञान करके उसका गौण सम्बन्ध दिखाना, इस प्रकार योगियों की विद्या को प्रकट करता है इसी प्रकार चन्द्र, सूर्य, और पृथ्वी आदि जो कर्म जगत् हैं उसको बनाने वाला और चेष्टा देने वाला कोई मनुष्य तो हो ही नहीं सकता, और वही जड़ जगत में स्वाभाविक कर्म विद्यमान है, इसलिए उसका कर्म जो उसकी चेष्टा से प्रतीत होता है, ईश्वर के होने का लिंग है।