सूत्र :संज्ञाकर्म त्वस्मद्विशि-ष्टानां लिङ्गम् 2/1/18
सूत्र संख्या :18
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अब स्पर्श गुण वाले वायु के प्रकरण को समाप्त करके इस बात को दिखलाते हैं कि हमने बड़ों के होने का चिन्ह क्या है जिससे बनान हुए शास्त्र और उनके किए हुए वेदार्थ का पता लग सके। इसका उत्त कणाद जी देते हैं कि उनके नाम और कर्म ही उनके होने का चिह्न है आशय है कि वेद मन्त्रों के अर्थ वाले ऋषियों के होने का प्रमाणवेद मंत्रों के साथ उनका नाम आने से, और उनकी बनाई हुई वेदों की शाखा ब्राह्यण और वेदांगों से मिलता है।
व्याख्या :
प्रश्न- ईश्वर के होने में क्या प्रमाण है? जिससे उसके ज्ञान वेद को प्रमाणित माना जावे?
उत्तर- ईश्वर अनुमान प्रमाण से सिद्ध है।
प्रश्न- अनुमान के लिए व्याप्ति की आवश्यकता है।
उत्तर- प्रत्येक जड़ वस्तु में क्रिया उत्पन्न करने से, ईश्वर के अतिरिक्त अन्य से असभव है और नाम होने से सत्ता के बिना नहीं हो सकता ईश्वर की सत्ता सिद्ध है। वेद जैसे वेदरूपी कर्म से भी ईश्वर की सत्ता सिद्ध है। क्योंकि सृष्टि के आदि में बिना गुरू के मनुष्यों की शिक्षा पाना सम्भव ही नहीं। जबकि इस समय भी बिना गुण के कोई विद्वान् नहीं हो सकता, जैसे बीज के बोने तो मनुष्य वृक्ष को उत्पन्न कर सकता है परन्तु बीज को उत्पन्न नहीं कर सकता। इसलिए विद्या के बीज वाले परमात्मा का होना सिद्ध है, अधिक वाद-विवाद अन्य स्थल पर मिलेगा।