सूत्र :सामान्यतो दृष्टाच्चाविशेषः 2/1/16
सूत्र संख्या :16
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : वायु के द्रव्य अदृष्ट लिंग वाला होने से सामान्य तो दृष्ट लिंग होता है, जिसकी परीक्षा न्यायदर्शन में कर चुके हैं। जिस प्रकार अन्य वस्तुओं के कार्य नाना प्रकार के गुण विशेषतायें प्राप्त करते हैं अर्थात् उनके रूप, रस में बहुत प्रकार का भेद पाया जात है, वैसे ही वायु कार्य कारण रूप में सामान्य दशा में रहती है, उसमें कोई भी एक दूसरे से विभेद करने वाली विशेषता उत्पन्न नहीं होती।
व्याख्या :
प्रश्न-क्या कारण है कि और द्रव्यों के हो सकते हैं, और वायु नाना प्रकार के कार्य पैदा नहीं करती?
उत्तर- इसलिए कि स्थूल द्रव्यों में सूक्ष्म प्रवेश कर सकते हैं और इसी कारण से उनमें न्यनाधिक प्रवेश करने से विविध प्रकार के कार्य उत्पन्न होते हैं। परन्तु वायु सूक्ष्म है उसमें दूसरा द्रव्य प्रवेश नहीं कर सकता, इसलिए उसके कार्य सब एक ही समान होंगे। उनमें सामान्य रूप से स्पर्श ही होगा और कुछ विशेषता नहीं होगी।
प्रश्न- वायु में शीत और उष्ण दोनों गुण सम्मिलित हो जाते हैं, जिससे वायु गर्म वा शर्द कहाती है, इसलिए यह कहना ठीक नहीं कि वायु में दूसरे द्रव्य प्रवेश नहीं करते।
उत्तर- यद्यपि वायु उनको उठाकर ले जाती है, जिससे शीत वा उष्ण वायु प्रतीत होने से प्रायः लोग यह विचार कर लेते हैं, कि शीतता व उष्णता वायु में सम्मलित हो गई। सत्य तो यह है कि वायु उनको एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जा रही है। जैसे चुम्बक पत्थर की शक्ति लोहे को उठा ले जाती है। क्या उस समय यह मान सकते हैं कि लोगा चुम्बक पत्थर की शक्ति में प्रवेश कर गया? आशय यह है कि जो द्रव्य दूसरे द्रव्य में प्रविष्ट हो जाता है, उसे सम्मिलित नहीं कहा जावेगा।