सूत्र :वायोर्वायुसम्मूर्च्छनं नानात्वलिङ्गम् 2/1/14
सूत्र संख्या :14
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : वायु का एक दूसरे से भिन्न दिशाओं से चलना बहुत वायुओं को सिद्ध करता है। क्योंकि प्रायः देखा जाता है कि परस्पर विरोधी दिशाओं से वायु के चलने से हवा का चक्र उत्पन्न होकर, वस्तु तिरछी चलने के कारण स्थान में ऊपर को जाने लगती है। उसे उठाने वाली वायु का भीऊपर जाना अनुमान किया जाता है। यद्यपि वायु का रूप न होने उसका ऊपर जाना प्रत्यक्ष नहीं होता, परन्तु तृणों के ऊपर जाने से, वायु के ऊपर जाने का अनुमान होता हैद्व परन्तु तिरछा चलने वाला वायु अपने स्वाभाविक गुण के विरूद्ध ऊपर चलने से प्रतीत करता है कि यह चेष्टा आपस के टकराने से ही हो रही है। वायु का एक दूसरे को रोकना, उसको एक से अधिक होना सिद्ध करता है। जलवायु एक व्यापक द्रव्य नहीं किन्तु माना हैं तो उनका संयुक्त होना दोनों सिद्ध होते हैं। इसलिए परमाणु रूप वायु तो नित्य है और कार्य रूप संयुक्त होने से अनित्य है।
प्रश्न- हवा का लिंग अदृष्ट क्यों बतलाया ? क्योंकि वायु का अदृष्टलिंग प्रमाणित नहीं होता।