सूत्र :न च दृष्टानां स्पर्श इत्यदृष्टलिङ्गो वायुः 2/1/10
सूत्र संख्या :10
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : उक्त स्पर्श पृथवी का आदि नहीं, इसलिए वायु का ही वह लिंग है। क्योंकि जल का शीत, तेज का उष्ण और पृथ्वी का पाकज अनुष्ण शीत स्पर्श है और यह अपाकाज अनुष्ण शीत होने के कारण उनसे निलक्षण है। इसलिए पृथ्वी का न होने से वायु का ही लिंग है।
प्रश्न- वायु द्रव्य होने पर ही उक्त स्पर्श वायु का लिंग हो सकता है।