सूत्र :विषाणी ककुद्मान्प्रा-न्तेबालधिः सास्नावानिति गोत्वे दृष्टं लिङ्गम् 2/1/8
सूत्र संख्या :8
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : सींगवाला होना कटे खर वाला होना, पूंछ अन्तिम भाव में बाल होना और गले कांवर अर्थात् खाल जो गले के नीचे लटका करती है, यह गौ के प्रत्यक्ष चिन्ह हैं। प्रथम कहा कि गाय सींग वाली हैं, परन्तु यह भैंस आदि अन्य पशुओं में विद्यमान था इसलिए कहा फटे पांव वाला होना, यह गुण दूसरें भी दूसरे पशुओं में विद्यमान थे इसलिए फिर कहा कि पूंछ के अन्त में बाल होना यह भैंस आदि में था। अंत में कहा कि जिसके गले के नीचे खाल लटकती हो, यह लक्षण अन्य पशुओं में नहीं अतः लक्षण समाप्त हो गया।
व्याख्या :
प्रश्न- यहां इस सूत्र की कोई आपश्यकता हनं क्योंकि द्रव्यों की परीक्षा में गौ के लक्षणों की क्या आवश्यकता है?
उत्तर- यह रूप अगले सूत्र की पूष्टि के लिए लिखा है, जिसमें यह बतलाया है कि केवल स्पर्श ही वायु का गुण है।
प्रश्न- इस स्थल पर बिना आवश्यकता के क्यों रखा गया, क्यों जिस स्थान पर और द्रव्यों का लक्षण किया गया था, उसी प्रकार वायु का लक्षण भी हो सकता था।
उत्तर- जबकि वायु का रूप न होने से, प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं हो सकता और स्पर्श की परीक्षा की जा रही है, इसलिए स्पर्श को वायु का गुण सिद्ध करने के लिए अनुमान करते हैं। क्योंकि रूप रहित पदार्थों का ज्ञान और उनके गुण अनुमान से ही जाने जा सकते हैं। पक्ष के रूप युक्ति और दृष्टाँत की भी आवश्यकता पड़ा करती है, इसलिए गौ का दृष्टान्त देकर बताया कि जिस प्रकार गौ के प्रत्यक्ष चिन्ह सींग आदि हैं परन्तु गले की खाल किसी दूसरे में शीत और उष्ण स्पर्श होता है, परन्तु ये पानी और आग के होने से वायु का केवल स्पर्श ही गुण सिद्ध है। गौ के दृष्टान्त से वायु के गुणों को सिद्ध किया गया है।