सूत्र :स्पर्शश्च वायोः 2/1/9
सूत्र संख्या :9
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : स्पर्श, शब्द और धृति तथा कम्प, थे ये वायु के अदृष्ट लिंग हैं यहां स्पर्श से अपाकज अनुष्ण शीत स्पर्श का ग्रहण है, अन्य आशय के बिना आकाश में तृणादि के धारण का नाम ‘‘शब्द’’ है और शास्त्रादि के हिलने का नाम ‘‘कम्प’’ है जैसे गौ के साथ सींग आदि सम्बन्ध है वैसे ही वायु के साथ शीत आदि का सम्बन्ध है गौ का जैसे गले बाल खाली का सम्बन्ध है इसी प्रकार वायु का स्वाभाविक सम्बन्ध स्पर्श मार्त से है।
प्रश्न- उक्त स्पर्श वायु का नहीं किन्तु पृथ्वी आदि का है?