सूत्र :त आकाशे न विद्यन्ते 2/1/5
सूत्र संख्या :5
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो पृथ्वी, अप तेज और वायु के गुण के गन्ध, रस, उष्णता और स्पर्श हैं, वे आकाश में नहीं पाये जाते।
व्याख्या :
प्रश्न- आकाश में भी नीलापन होता है जो रूप हैं जिसका प्रतिबित्ब स्वच्छ जल वा दर्पण में दीखता है। यदि आकाश में रूप नहीं होता तो उसका प्रतिबिम्ब किस प्रकार होता है।
उत्तर- जो नीला रूप आकाश में प्रतिबिम्ब में दीखता है, वह आकाश का रूप नहीं है किंतु आकाश में रहने वाले जल कणों का है। और नियम यह है कि सूक्ष्म के गुण स्थूल में नहीं आते, क्योंकि गुण और द्रव्य में ऐसा ही सम्बन्ध है कि एक दूसरे के बिना नहीं रह सकता। इसलिए जब सूक्ष्म द्रव्य के भीतर स्थूल द्रव्य न आ जावे जब तक उसके गुण नहीं आ सकते। जब कि आकाश पंच तत्वों में सूक्ष्मतर है इसलिए आकाश में वारों तत्वों के गुण नहीं आ सकते। जैसे पानी तो गर्म हो सकता है, क्योंकि अग्नि पानी से सूक्ष्म है परन्तु आग ठण्डी नहीं हो सकती क्योंकि पानी अग्नि से स्थूल है वह अग्नि में नहीं आ सकता, इसलिए अग्नि में उसका गुण सर्दी नहीं हो सकती। आशय यह है कि स्थूल तत्त्वों में सूक्ष्मों के गुण मिले हुए हैं, इस कारण उनमें उने गुणों का प्रत्यक्ष होता है।
प्रश्न- पानी में जो बहने का गुण बतलाया गया है, सो ठीक नहीं क्योंकि घी लाख और मोम भी बहने वाले पदार्थ हैं।