सूत्र :स्पर्शवान्वायुः 2/1/4
सूत्र संख्या :4
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यद्यपि वायु का गुण केवल स्पर्श है और शीत और उष्ण वायु का स्वाभाविक गुण नहीं जब हवा पानी के अंश को लेकर चलती है है तो ठंडी हो जाती है, और जब अग्नि के अंश को चलती है जब गरम हो जाती है। वायु का गुण सर्दी गरमी से पृथक् केवल स्पर्श है। जिसका त्वचा से प्रत्यक्ष होता है। वायु का इन्द्रिय त्वचा है।