सूत्र :सामान्यविशेषाभावेन च 1/2/16
सूत्र संख्या :16
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : यदि कर्म में रहने वाला जातित्व, द्रव्य होता तो द्रव्य में रहने वाला सामान्य और विशेष उसमें पाये जाते। जबकि उसमें सामान्य और विशेष नहीं पाये जाते इसलिए कर्म में रहने वाली जाति द्रव्य, गुण, और कर्म से पृथक् है।
प्रश्न- द्रव्य गुण और कर्म में रहने वाली सत्ता द्रव्य गुण और कर्म में रहने वाला होने से पृथक-पृथक क्यों न मानी जावे, क्योंकि भिन्न-भिन्न प्रकार की सत्ता हो सकती है।