सूत्र :कर्मसु भावा-त्कर्मत्वमुक्तम् 1/2/15
सूत्र संख्या :15
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रत्येक धर्म में रहने वाला होने से कर्मत्व कहा गया है। वह भी द्रव्यत्व और गुणत्व के समान मामान्य और नित्य हैं क्योंकि वह हर कर्म में रहता है। इन सूत्रों में जिनको हमने द्रव्यत्व, गुणत्व और कर्मत्व कहा है, उससे हमारा आशय जाति से है, जो द्रव्य गुण और कर्म में रहती है। प्रयेक जाति को दूसरी जाति से पृथक् करने वाला जो जातित्व है, वह सब जातियों में समानतया पाया जाता है। ऐसे ही कर्म जो जातित्व है वह भी नित्य है। इन सूत्रों से जाति को नित्य बतलाया है।