सूत्र :सामान्यविशेषाभावेन च 1/2/10
सूत्र संख्या :10
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस प्रकार द्रव्य गुण और कर्म में सामान्य विशेष पाया जाता है, यदि सत्ता भी द्रव्य गुण और कर्मों से कोई होती तो उसमें भी सामान्य और विशेषता पाई जाती जबकि सत्ता में ये दोनों (सामान्य और विशेष) नहीं पाये जाते, इसलिए द्रव्य गुण कर्म से सत्ता एक भिन्न वस्तु है।
व्याख्या :
प्रश्न- पहिले सूत्र सं० 4 में बतला चुके हैं कि सत्ता सामान्य है विशेष नहीं अब इसको सामान्य और विशेष से पृथक् क्यों कहा?
उत्तर- पूर्व जो सामान्य होनो कहा है, वह द्रव्य गुण और कर्म में रहने वाले गुण की अपेक्षा से जो सामान्य विशेष है, कहा है। जबकि सामान्य और विशेष का लक्षण बता चुके हैं कि वे बुद्धि से निश्चित किये जाते हैं इसलिए अपेक्षा रखने वाले गुण एक ही पाये नहीं जाते अतः एक सत्ता में इन दोनों गुणों का न होना ही सिद्ध होता है। सामान्य की अपेक्षा से विशेष होता है और विशेष की अपेक्षा से सामान्य होता है। जहां विशेष न हो हो किसकी अपेक्षा से सामान्य कहावेगा? इसलिए सामान्य और विशेष का शब्द सत्ता के जिलए ही नहीं सकता अतः केवल सत्ता में सामान्य और विशेष का प्रयोग नहीं हो सकता।