सूत्र :अनेकद्रव्यवत्त्वेन द्रव्यत्वमुक्तम् 1/2/11
सूत्र संख्या :11
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस तरह द्रव्य, गुण और कर्म में सत्ता रहती है, जो न द्रव्य है न गुण न कर्म, ऐसे ही अनेक द्रव्यों में रहने वाला द्रव्यत्व है, जिससे द्रव्य की गुण कर्म से पृथक् पहिचान हो जावे अर्थात् गुण कर्म सामान्य विशेष इत्यादि से, जिस गुण के कारण, द्रव्य को भिन्न मानते हैं और वह द्रव्य में सदैव रहने से नित्य है। वह द्रव्यत्व भी, द्रव्य गुण और कर्म से नितांत भिन्न है और अनेक द्रव्यों में रहने से सामान्य ही है। यदि द्रव्य पन को विशेष माना जावे तो अनेक द्रव्यों में एक द्रव्यपन नहीं रहना चाहिए किन्तु अनेक में गुण होने चार्हिए जैसे एक द्रव्य दूसरे से भिन्न है, परन्तु द्रवयत्व दोनों में समान और एक ही है। इसलिए द्रव्यत्व, द्रव्य से भिन् है जो द्रव्यों में समान भाव से रता है। द्रव्य में, कारण और कार्य होने से, नित्यता और अन्त्यिता पाई जाती है, किन्तु द्रव्यत्व में यह बात नहीं हैं। वह सदैव समान भाव से रहता है इसके सम्बन्ध में युक्ति देते हैः-