सूत्र :गुणकर्मसु च भावान्न कर्म न गुणः 1/2/9
सूत्र संख्या :9
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : सत्ता दव्य तो हो ही नहीं सकती क्योंकि उसमें न तो गुण है न क्रिया है न वह समवाय कारण हो सकती है। यही द्रव्य के लक्षण हैं जब द्रव्य नहीं तो गुण और कर्म में रहने से गुण और कर्म भी नहीं हो सकते। इसलिए सत्ता द्रव्य गुण और कर्म से भिन्न, सब वस्तुओं में रहने वाली भिन्न है। इस पर और भी युक्ति दे हैं।