सूत्र :अदुष्टं विद्या 9/2/8
सूत्र संख्या :8
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : दोष अर्थात् प्रकार की खराबी से अतिरिक्त ज्ञान का नाम विद्या है अर्थात् जिस ज्ञान में न तो किसी प्रकार का इन्द्रियों का दोष्ष कारण हो और नहीं संस्कार से उत्पन्न हुई किसी की खराबी है। उस ज्ञान को विद्या कहते हैं। अर्थात् जो पदार्थ जैसा हो उससे उसी प्रकार का जान लेना विद्या है।
प्रश्न- प्रत्यक्ष और अनुमान के अतिरिक्त आर्ष ज्ञान को भी पृथक् प्रमाण मान लेना चाहिए क्योंकि न तो वह प्रत्यक्ष के अंदर आ सकता, न ही वह इन्द्रिय और अर्थ के सम्बन्ध से उत्पन्न होता है। और न ही अनुमान के अन्दर है। क्योंकि किसी प्रकार की व्याप्ति अर्थात् सम्बन्ध को प्रमाणित किये उत्पादन होने से। इस वास्ते यह तृती प्रमाण है।