सूत्र :हेतुरपदेशो लिङ्गं प्रमाणं करणमित्यनर्थान्तरम् 9/2/4
सूत्र संख्या :4
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिससे अर्थ अर्थात् मतलब को कह दें चह उपदेश कहलाता और वह हेतु अर्थात् कारण और लिंग अर्थात् निशान बोधक है। निशान के नियम से प्रेय अर्थात् ज्ञान के कारण को ही प्रणाम कहते हैं। इस प्रकार कारण या या कारण को अनुमान करते हैं। लिंग अर्थात् निशान या लक्षण का बोधक ही विचार लेना चाहिए। कुछ सम्बन्ध के कारण जो इन्द्रिय और अर्थ का मेल होता है उससे व्याप्ति अर्थात् सम्बन्ध को मालूम करके किया जाता। और कुछ यहां एक के बिना दूसरा न हो सके, इस नियम के बल से किया जाता है।
व्याख्या :
प्रश्न- जबकि शब्द का न तो मतलब से मेल है और नहीं ऐसा सम्बन्ध है, जहां एक के बिना दूसरा न रह सकता हो। इस अवस्था में शब्दार्थ का वर्णन किस प्रकार कर सकतस है?
उत्तर- पहले प्रमाणित कर चुके हैं, कि शब्द का अर्थ से संकेत अर्थात् बंधे हुवे नियम से सम्बन्ध है। इस वास्ते शब्द से उस अर्थ का वर्णन हो जाता है
प्रश्न- संकेत भी शब्दार्थ को प्रकाशित नहीं कर सकता, क्योंकि संकेत पद के अर्थ में है न कि सम्बन्ध में संकेत है। यदि कहो सम्बन्ध भी संकेत के हैं तो भी नहीं क्योंकि सम्बन्ध अनेक प्रकार का होने से संकेत का जो विषय है। उसकी सत्ता के यथार्थ ज्ञान न होने से। यदि कहो शब्द और अर्थों के संचत कारण वाक्यों का अर्थ भी मालूम हो जाता है, तो यह भी नहीं, क्योंकि दूसरे के संकेत से, दूसरे की उपस्थिति से, अति प्रसक्ति दोष होता है। अर्थात् नियम भंग हो जाता है।
उत्तर- जब कि वाक्य शब्दों का संग्रह है और संग्रह में वही गुण होता है जो उस के अवयव में होता है। इस वास्ते शब्दों के अर्थ जानने से वाक्य का अर्थ मालूम हो जाता है। इस वास्ते शब्द भी एक प्रकार का लिंग है, जिससे उस अर्थ का अनुमान में सम्मिलित हो सकता है।