सूत्र :कारणमिति द्रव्ये कार्यसमवायात् 10/2/1
सूत्र संख्या :1
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अब प्रसंगानुसार यथ अवसर तीनों कार्यों का विशेष प्रकार से विभाग का विचार करते हैं।
कारणमितिद्विव्ये कार्य समवाय ।1।
अर्थ- यह समवाय कारण है, इसका व्यवहार द्रव्य में मालूम करना चाहिए यह किस प्रकार है, इस पर कहते हैं। द्रव्य ही में गुण और कर्म समवाय सम्बन्ध से रह सकते हैं। गुण और कर्म में द्रव्य नहीं रह सकता। जिसमें रह सकें, वही समवाय कारण हो सकता है। और जिसमें आधार होने की योग्यता नहीं, किन्तु वह दूसरों में ही रहने वाला है वह समवाय कारण नहीं हो सकता। तात्पर्य यह है कि द्रव्य में ही समवाय कारण होता है।
प्रश्न- क्या द्रव्य केवल समवाय कारण ही हो सकता है या कोई अन्य कारण भी?
उत्तर- जिस प्रकार कपड़े की उत्पत्ति में सूत की तारें समवाय कारण हैं उसी प्रकार तारों के संयोग के कपड़े के कारण से जुलाहे के अस्त्र जो इस संयोग के कारण हैं, वह निमित्त कारण है। क्योंकि संयोग जो समवाय कारण हैं उसकी उत्पत्ति अस्त्रों के बिना नहीं हो सकती, इस वास्ते द्रव्य समवायकारण और निमित्तकारण होता है और समवाय कारण कर्म होता है अब यह बतलाते हैं कि कर्म किस प्रकार के कारण होते हैं।