DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

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सूत्र :एतेन शाब्दं व्याख्यातम् 9/2/3
सूत्र संख्या :3

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : जो शब्द के द्वारा ज्ञान उत्पन्न होता है जो न्याय आदि शास्त्रों में उपदेश से संगत करक कहा है वह भी इसी अनुमान में शामिल है, क्योंकि लिंग एक शब्द के अन्दर आ जाता है। जिस प्रकार अनुमान प्रमाण, व्याप्ति ग्रह अर्थात् सम्बन्ध के मालूम होने से ही साबित होता ह। इसके बिना नहीं हो सकता, क्योंकि जब शब्द का अर्थ के साथ सम्बन्ध मालूम हो जाता है। तब ही उस शब्द से वह अर्थ मालूम होता है। जिस प्रकार अनुमान दो तरह वर्णन किया गया है ऐसे ही शब्द और अर्थ का सम्बन्ध भी दो ही तरह से लिया जाता है। एक शब्द के अन्दर जो अर्थ बताने वाली शक्ति रहती है। दूसरे लक्षण और व्यंचनादि से। जैसे पहले किसी ने धूम के साथ अग्नि का सम्बन्ध पाकाशला में देखा हो तब ही वह दूर से धूम को देखकर अग्नि के होने का अनुमान कर सकता है।

व्याख्या :
प्रश्न- बहुत अवस्थाओं में एक ही वाक्य का मतलब लोग अलग अलग समझ लेते हैं, किन्तु अनुमान के अन्दर ऐसा सम्भव नहीं? उत्तर- वाक्य संयुक्त हैं। शब्द से यदि शब्द के ठीक-ठीक अर्थों को समझने में किसी प्रकार की हानि हो तो उसका तात्पर्य दूसरा हो जायेगा। परंतु जो मनुष्य शब्दों के अर्थ और उनके सम्बन्ध सबको ठीक-ठीक समझते हैं उनके समझने में भेद नहीं होता। इसी प्रकार अनुमान में पांच अवयवों के विरूद्ध समझने से अनुमान विरूद्ध हो सकता है एक शुद्ध और कई प्रकार के अशुद्ध मिल कर अनुमान से भी अलग-अलग परिणाम निक सकते हैं। प्रश्न- लक्षण आदि का व्यावहार किस प्रकार से हो जिस शब्द का ज्ञान ठीक हो सकेः उत्तर- जहां आकांक्षा, योग्यता और अस्ति आदि उत्पन्न हों वही लक्षण हो सकती है। प्रश्न- जो पद और अर्थों का सम्बन्ध बतलाया वह खराब है क्योंकि शब्द और अर्थों में संसर्ग नहीं और शब्द और अर्थ का केवल नियत किया हुआ सम्बन्ध पहले प्रमाणित कर चुके हैं। उत्तर- जिस प्रकार कारण कार्यादि के सम्बन्ध भी संसार में उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार शब्द और अर्थ का सम्बन्ध भी ईश्वर के नियमित से होता है। यह पहले प्रमाणित कर चुके हैं। इस वास्ते जिस प्रकार कार्य कारण से अनुमान खराब नहीं। ऐसे ही शब्द को विचार लो। प्रश्न- बहुत से मनुष्य लक्षण आदि को जो तात्पर्य को पूरा करने के वास्ते शब्दों के अर्थ में व्यावहार में लाई जाती है, अप्रमाण कहते हैं? उत्तर- लक्षण आदि दो प्रकार से हो सकती है एक आवश्यकता के समय, जब शब्दों से कहने वाले का मतलब समझ में न आता हो। दूसरे अपने मतलब को पूरा करने के वास्ते खींचतान कर कहने वाले के मतलब को बिगाड़ने के लिए। उनमें से प्रथम शास्त्रानुसार होने से और सृष्टि में बराबर मानी जाने से ठीक प्रकाण जो ठीक नहीं है उसके प्रमाण होने से जो असली लक्षण हैं नहीं, कोई हानि नहीं। प्रश्न- क्या लक्षणादि दूसरे ज्ञान को उत्पन्न नहीं करती? उत्तर- लक्षण से केवल कहने वाले के मतलब का स्मरण होता है कोई नवीन अर्थ उत्पन्न नहीं होता जैसे किसी ने कहा कि जब संख बजे तब तुम चले आना अथवा जिस समय अंगुली उठे तब तुम उसको सजा देना। अब संख बजने से उसको शब्द के अर्थ से कोई पता नहीं लगा। जो प्रथम उपदेश किया गया था वही स्मरण हो गया, जिस पर उसने काम किया। ऐसे ही अंगुली उठाने से कोई नवीन ज्ञान उत्पन्न नहीं हुआ किन्तु पुराना बतलाया हुआ याद आ गया। इस प्रकार विचार लेना चाहिए, कि शब्द लिंग केवल पहले सम्बन्ध को स्मरण कराकर उसकी सत्ता को बताते हैं। किसी नवीन अर्थ को नहीं बतलाते। इस वास्ते शब्द प्रमाण अनुमान के अन्तर ही सम्मिलित है। प्रश्न- शब्द कैसे लिंग हो सकता है। शब्द का अर्थ कहने वाला होने से और लिंग से पृथक् होने से।

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