DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
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सूत्र :एकदेशे इत्येकस्मिञ्शिरः पृष्ठमुदरं मर्माणि तद्विशेषस्तद्विशेषेभ्यः 10/1/3
सूत्र संख्या :3

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : एक शरीर में पृथक्-पृथक् अवयव का जो विभाग है। वह भी उनके कारणों में विभाग के कारण से है। जैसे शिर एक भाग है पेट दूसरा, पीठ तीसरा ऐसे नाड़ि आदि उनके कारण हैं। एक से दूसरे में विशेषता और अजातित्व उपस्थित है। मतलब यह है कि जिन परमाणुओं से शिर बना है पैर उससे नहीं बने क्योंकि किसी भाग में अग्नि ज्यादा कहीं जल ज्यादा, कहीं मिट्टी ज्यादा, कहीं वायु ज्यादा। मतलब है, कि इन कारणों में भेद है। यद्यपि घड़ा और कपड़ा जिन परमाणुओं से बनते हैं उनमें परमाणुपन सामान्य होने से उनका कारण एक ही है किन्तु परमाणुओं विभागों में भेद है। किसी में और किसी प्रकार के परमाणु विशेष और किसी प्रकार के कम होने से उनमें भेद है। इसी प्रकार शरीर के अवयवों में जो जो भेद है वह कारण के भेद से है। दसवें अध्याय का प्रथम आन्हिक समाप्त हुआ।

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