सूत्र :तथा द्रव्यान्तरेषु प्रत्यक्षम् 9/1/10
सूत्र संख्या :10
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : योग की उत्पन्न हुई र्ध की सहायता से मन में द्रव्या के परमाणु आदि का भी ज्ञान हो जाता है और काल, दिशा आकाशादि के तत्व से भी जानकर हो जाता है। तात्पर्य यह है, कि प्रत्येक पदार्थ की योग्यता को योगी जान सकता है।
प्रश्न- यदि योगी सर्वज्ञ हो गया, तो योगी और सर्वज्ञ ईश्वर में क्या भेद है।
उत्तर- ईश्वर एक समय में प्रत्येक वस्तु की योग्यता को जानता है योगी को इन्द्रिय शक्ति है, कि जिस वस्तु के जाने में मन लगावे उसको जान सके। वह एक काल में समस्त पदार्थों का ज्ञान नहीं रखता। उसको केवल प्रत्येक पदार्थ के जानने की शक्ति है। एक प्रकार के योगियों का वर्णन करके अब दूसरी प्रकार के योगियों का वर्णन करते हैं।