सूत्र :तत्समवायात्कर्मगुणेषु 9/1/11
सूत्र संख्या :11
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : उसके समवाय से कर्म और गुणों का प्रत्यक्ष ज्ञान उत्पन्न होता है। यदि भौतिक सम्बन्ध की आवश्यकता है। तो परमाणु आकाश दिशा और काल में रहने वाले सामान्य गुणों का अपने मन के संयोग समवाय से ज्ञान होता। और दूसरे द्रव्यों में जो उपयोग के वास्ते शरीर संग्रह होता है अर्थात् सूक्ष्म कारण और स्थूल शरीर उनके साथ मन के संयोग से और उसी मेल हुई के सम्बन्ध से ज्ञान उत्पन्न होता है। बिना मन सम्बन्ध के वाह्य शक्तियों से किसी अवस्था में ज्ञान उत्पन्न नहीं होता। और योगी को शक्तियों का ठीक-ठीक ज्ञान होने से समस्त अयुक्त संदेह दूर हो जाते हैं।