सूत्र :आत्मसम-वायादात्मगुणेषु 9/1/12
सूत्र संख्या :12
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : क्या अब नहीं बुद्धि आदि में मन के दूसरें द्रव्यों के संयोग सम्बन्ध से प्रत्यक्ष ज्ञान उत्पन्न होता है।
हम लोगों की तरह । तात्पर्य यह है, कि जिस प्रकार हम लोगों को ज्ञान उत्पन्न होना कहा, योगियों को उसी प्रकार ज्ञान होता है या अन्य प्रकार से। आत्मा मन से और मन इन्द्रियों से और इन्द्रिय अर्थ से मिलती है। तब जो नहीं बदलने वाला ज्ञान होता है वह लौकिक प्रत्यक्ष है। और जो अर्थ से या योगी की समाधि की अवस्था में जिन पदार्थों का ज्ञान होता है। वह प्रत्यक्ष हैं अर्थात् एक तो इन वाह्य इन्द्रियों से जो ज्ञान होता है वह प्रत्यक्ष है। दूसरे योगियों को जो मन के अन्दर प्रत्येक पदार्थ की योग्यता का ज्ञान होता है वह मानसिक प्रत्यक्ष है। बस! यह लौकिक और अलौकिक योगियों को समाधि अवस्था में होने वाला दो प्रकार का प्रत्यक्ष है।
नवमे अध्याय का पहिला आन्हिक समाप्त।