सूत्र :आत्मन्यात्ममनसोः संयोग-विशेषादात्मप्रत्यक्षम् 9/1/9
सूत्र संख्या :9
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : आत्मा में, आत्मा और मन के विशेष प्रकार के संयोग से प्रत्यक्ष ज्ञान उत्पन्न हो जाता है। योगी दो प्रकार के होते हैं एक वह जिसका मन एकाग्र हो गया है। दूसरे जिनका अन्तःकरण अभी एकाग्र नहीं हुआ है। उनके पहले जिस वस्तु का प्रत्यक्ष करना हो उसमें मन को स्थित करके निधिव्यान करके उनकी आत्मा में परमात्मा का ज्ञान उत्पन्न होता है। आत्मा के प्रत्यक्ष तात्पर्य यह है कि जिस समय ज्ञान आत्मा का साफ-साफ हो जावे। यद्यपि हम लोंगों की भी आत्मा कुछ-कुछ ज्ञान है, किन्तु वह अविद्या से ढका हुआ है। योगियों के आत्मा और मन से विशेष प्रकार का संयोग होने से उसमें आत्मज्ञान ठीक होता है।
प्रश्न- क्या योगियों को केवल आत्मा का ही ज्ञान होता है। हम तो सुनते हैं कि उनका प्रत्येक वस्तु का तत्व हो जाता है।