सूत्र :अभूतं नास्तीत्यनर्थान्तरम् 9/1/8
सूत्र संख्या :8
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : गुजर गया) (अब नहीं है) यह ज्ञान विध्वंसाभाव को जाहिर काता है। और गुजर गया न कह कर केवल यह कहना, कि नहीं हैं। इस अभाव से अत्यन्ताभाव का ही प्रत्यक्ष होता है तात्पर्य यह है, कि जहां उत्पत्ति व नाश को न बतला कर केवल अभाव का वर्णन किया जाता है वह अत्यन्ताभाव ही होता है। (पनर्थान्तरम्) कहने से अन्योन्ताभाव का भी पृथक कर दिया है। तात्पर्य यह है कि जो वस्तु न कभी हुई हो और न होने की आशा हो। उस वस्तु का उस अवसर पर अत्यन्ताभाव मानना चाहिए। भूत काल और भविष्यत कहने से तो प्राग्यभाव और विष्वंसाभाव से पृथक् किया और उस आश्रय में नहीं यह ज्ञान का कारण बतलाया। इस वास्ते यह तीन काल में रहने वाला अभाव अर्थात् अत्यन्ताभाव है स्पष्ट प्रतीत होता।
प्रश्न- घर में जो घड़े का अभाव है। यह अत्यन्ताभाव नहीं और इस अवसर पर दूसरें स्थान पर घड़ा होने से प्रग्भाव भी नहीं है। और घड़े के नाश का प्रमाण न होने विध्वंयाभाव भी नहीं है। क्योंकि वह समवाय कारण में रहने वाले हैं और जिसकी उत्पत्ति और नाश हो वह अत्यन्ताभाव नहीं, क्योंकि उत्पत्ति और नाश वाले आ अत्यन्ताभाव का हट है। और नहीं चौथा अर्थात् अन्योऽन्याभाव है।