सूत्र :एतेनाघटोऽगौरधर्मश्च व्याख्यातः 9/1/7
सूत्र संख्या :7
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : उपरोक्त बातों से से स्पष्ट प्रतीत होता है, कि गौ के जो गुण है वह प्रत्यक्ष से घड़े में नहीं पाये जाते और जो घड़े के गुण हैं वह गौ में नहीं पाये जाते। इससे घड़े का गौ न होना और गौ का घड़ा न होना प्रत्यक्ष प्रमाण से साबित है इस वास्ते अन्योऽन्याभाव अर्थात् एक का अभाव दूसरें में प्रत्यक्ष होना है। अन्योन्याभाव के मालूम करने में विपक्षी की योग्यता की आवश्यकता नहीं, परन्तु जिस आधार में वह गुण रहते हैं उसकी योग्यता जरूरी है। गौ में घड़े के ऐसे ही और वस्तुओं में विचार लेना चाहिए।
व्याख्या :
प्रश्न- दो विरूद्ध वस्तुओं के मालूम होने पर ही (अन्योऽन्याभाव) अर्थात् एक का दूसरे में अभाव का ज्ञान हो सकता है?
उत्तर- नहीं, अवयवी कारण अर्थात् आश्रय में रहने वाला जाना हुआ अधर्म ही उसको पृथक् करने वाला है न कोई दूसरी वस्तु उसको उससे पृथक् अर्थात् उसमें अभाव साबित करने वाली है। अब अत्यन्ताभाव की बाबत करते हैं।