सूत्र :यच्चान्यदसदतस्तदसत् 9/1/5
सूत्र संख्या :5
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : उन तीन प्रकार के अभावों के अतिरिक्त जो अभाव है वह अत्यन्त्य भाव है, क्योंकि प्रग्भाव के पश्चात् नाश हो जाता है। अर्थात् वस्तु की उत्पत्ति से उसका अभाव नहीं रहता। और विध्वंयाभाव का नाश होने से प्रथम अभाव है। अर्थात् जब तक किसी वस्तु भाव का नाश होने से प्रथम अभाव है। अर्थात् जब तक किसी वस्तु का नाश नहीं हुआ तब तक उसका विध्वंसाभाव उपस्थित ही नहीं। और अन्योऽन्याभाव विपक्षी में रहता। परन्तु अत्यन्ताभाव इन तीनों का विपक्षी अभाव अभाव है। अब दूसरें विषय का आरम्भ करते हैं।