सूत्र :सच्चासत् 9/1/4
सूत्र संख्या :4
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जहां घड़ की एपस्थिति में उसके अभाव का वर्ण किया जाता है, जैसे कहते हैं कि गौ ऊंट नहीं और ऊंट गौ नहीं। इससे गौ और ऊंट का अभाव तो साबित नहीं होता इस ‘‘नहीं’’ शब्द से जाहिर है, कि उनमें तादात्म्पाभाव अर्थात् उसमें उसका अभाव है और उसमें उसका अभाव है। यह अभाव दो प्रकार के अभाव से पृथक तीसरे प्रकार का अभाव है। क्योंकि वस्तु की उपस्थिति में उसका अभाव है। वस्तु की उत्पत्ति से प्रथम नहीं और नहीं उसके नाश के पश्चात् उसका नाम अन्यान्याभाव अर्थात् एक में दूसरें का अभाव है। और यह अभाव हमेशा रहने वाला है, क्योंकि घड़े का कपड़ा और कपड़े का घड़ा किस प्रकार सम्भव है। वह सर्वदा पृथक-पृथक ही रहेंगे। इस वास्ते जिस प्रकार पहलीऔर दूसरी तरह का अभाव अनित्य है जिसके विरूद्ध यह अभाव नित्य है।