सूत्र :सदसत् 9/1/2
सूत्र संख्या :2
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जिस प्रकार कार्य अर्थात् उपादान कारण और कर्ता के बनाने से प्रथम प्रथम प्रत्यक्ष और अनुमान से कार्य अभाव साबित होता है। ऐसे ही नाश करने के कारण सम्बन्ध और क्रियाओं के ‘पश्चात् भी उस घड़े आदि कार्य का अभाव सिद्ध होता है। उत्पत्ति से प्रथम के अभाव का नाम प्राक्भाव और नाश होने के पश्चात् के अभाव का नाम विध्वंसाभाव है।
प्रश्न- घड़ा ही विशेषावास्था में टूटने के व्यापार अर्थात् क्रिया को स्वीकार करता है, न कि घड़े के अतिरिक्त उसका विध्वंस अर्थात् नाश होता है।