सूत्र :क्रियागुणव्यपदेशाभावात्प्रागसत् 9/1/1
सूत्र संख्या :1
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कार्य अपनी अत्पत्ति से नहीं होता, क्योंकि उस समय में अपने उत्पन्न करने वाले के अभाव का होना उसमें युक्ति हैं कि क्रिया और गुण के न होने से यदि उस समय भी कार्य अर्थात् घड़ा कपड़ा आदि अपनी उत्पत्ति से प्रथम उपस्थित होते, तो जिए प्रकार उत्पन्न होने के पश्चात् गड़ा पड़ा हुआ, घड़ा चलता है, यह घड़ा खूबसूरत है। इस प्रकार का व्यौरा होता है। उत्पन्न होने से पहले होता, किन्तु उत्पत्ति से प्रथम ऐसा दृष्टिगत नहीं होता, जिससे स्पष्ट प्रतीत होता है, कि घड़ा उस समय मौजूद नहीं। कुम्भकार को चाक पर घड़ा बनाते हुए देख कर और जुलाहे को तारों से ताना बादा बनते हुए देखकर इस जगह घड़ा बमेगा यह सब मनुष्य प्रत्यक्ष प्रत्यक्ष से अनुभव करके कहते हैं और वह हमारी आंखों के सामने पैदा होते नजर आता है।
व्याख्या :
प्रश्न- उत्पत्ति से प्रथम भी घड़ा उपस्थित था, कारण की क्रियाओं से मालूम हो गया। जैसे किसी मकान के अन्दर कोई वस्तु हो और वह दृष्टिगत न होती हो उसको कोई मकान खोलकर निकाल लावे तो निकालने से प्रथम उसका अभाव नहीं होगा।
उत्तर- यदि प्रथम ही मौजूद होता तो कपाल आदि के प्रसंग से नहीं बनता जिस प्रकार अन्दर या से निकाल लाते है। उसी प्रकार पूरा निक आता परन्तु सदैव इसके विरूद्ध दृष्टिगत होता है। प्रथम के अवयव बनते हैं फिर उनके संयोग से कार्य बनता है।