सूत्र :तथापस्तेजो वायुश्च रसरूपस्पर्शाविशेषात् 8/2/6
सूत्र संख्या :6
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : इसी प्रकार रसना इन्द्रिय की प्रकृति अर्थात् उपादान कारण जल, और चक्षु का उत्पादन कारण तेज अर्थात् अग्नि, और स्पर्श त्वचा का उपादान कारण हुआ, क्योंकि उसी भूत के विषय को नियमित तौर पर अनुभव करने वाली है।
प्रश्न- यह किस प्रकार नियम हो सकता है, कि सम्पूर्ण शरीर में अग्नि उपस्थित हो, परन्तु रूप को देखना केवल चक्षु द्वारा ही सम्भव हो अन्य अवयवों से न हो।
उत्तर- यहां भी वही दबाने योग्य अवयवों से उत्पन्न होने की अपेक्षा ही से नियम है। जैसा कि पिछले सूत्र में नासिक सम्बन्धी बतलाया गया है। इसी प्रकार आकाश की इन्द्रिय काम को भी समझ लेना चाहिये।
आठवाँ अध्याय समाप्त हुआ।