सूत्र :द्रव्येषु पञ्चात्मकत्वं प्रतिषिद्धम् 8/2/4
सूत्र संख्या :4
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : द्रव्यों में जो शरीर इन्द्रिय आदि कार्य द्रव्य हैं वह पांच भूतों से बनी है उसकी (तरदीद) विरूद्धता करते हैं। जैसे एक शरीर के बहुत से उत्पादन कारण नहीं ऐसे ही नासिका चक्षु आदि इन्द्रियों के भी बहुत से कारण नहीं इससक यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि जो इन्द्रिय जिस भूत की बनी हुई उसी के नियमित विषय का ग्रहण करती है दूसरे भूत की इन्द्रिय दूारे भूत के विषय को ग्रहण नहीं कर सकती। यद्यपि रूपादि विषय एक-एक भूत के नियमित विष हैं। इस वास्ते उनकी ग्रहण करने वाली इन्द्रियां भी एक भूत से उत्पन्न हुई स्वीकार करनी चाहिए। जिस मतलब से यह सूत्र कहा गया है, आगे उस मतलब को बताते हैं।