सूत्र :दृष्टेषु भावाददृष्टेष्वभावात् 8/2/2
सूत्र संख्या :2
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जब बुद्धि के समीप विषय होता है तो ‘‘यह’’ जब लुप्त विषय होता है तो ‘वह’ बुद्धि में स्थित स्वीकार किया जाता है। तू है, इस ज्ञान में उपस्थित करने वालाक्या है इस ज्ञान में कर्म कहलाता है। इस ज्ञान में जिसमें लगाता है और और लगाने वाला विषय नहीं। यह दोनों, इस ज्ञान में वह दोनों का विषय है। जबलुप्त विषयों में इस प्रकार के ज्ञान उत्पन्न नहीं होते। यह केवल अन्वय और व्यतिरेक से मालूम देता है। अब दूसरे प्रकरण अर्थात् विषयों को आरम्भ करते हैं।