सूत्र :अयमेष त्वया कृतं भोजयैनमिति बुद्ध्यपेक्षम् 8/2/1
सूत्र संख्या :1
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पिछले आन्हिक में स्वकल्प अर्थात् शक्य और संदेह से मिले हुए प्रत्यक्ष की जाँच करके अब विशिष्ट और विशेष्य प्रत्यक्ष की जांच करते हैं।
अयमेषत्वयाकृतं भौयैनमिति वृद्धयपेक्षम् ।1।
अर्थ- जिस वस्तु के साथ इन्द्रिय का सम्बन्ध होता है उससे, यह ही, ऐसा ज्ञान उत्पन्न होता है। और जिस वस्तु के साथ इन्द्रिय का सम्बन्ध नहीं उसकी अपेक्षा, वह ही, ऐसा ज्ञान पैदा होता है। यह करने में सवतंत्र है। यह ज्ञान में रखकर तूने किया है। इस प्रकार का ज्ञान होता है। कठिन काम के ज्ञान के काम की अपैक्षा से जो हो गया। किया है कर्म यह ज्ञान उत्पन्न होता है। खाने के कर्म को खियाल रखकर उसके कत्र्ता को कहते हैं, कि खाता हैं इस प्रकार ज्ञान होता है वैसे ही सम्बन्ध का शब्द से वर्णन किया जाता है। ऐसा प्रत्येक स्थान मे विचार लेना।