सूत्र :समवायिनः श्वैत्याच्छ्वैत्यबुद्धेश्च श्वेते बुद्धिस्ते एते कार्यकारणभूते 8/1/9
सूत्र संख्या :9
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : समवाय सम्बन्ध के न होने से गुण कर्म के ज्ञान में गुण कर्म की आवश्यकता नहीं। जिस प्रकार द्रव्य में द्रव्य गुण का समवाय सम्बन्ध से रहते हैं ऐसे ही गुण कर्म में गुण कर्म समवाय सम्बन्ध से नहीं होता। इस वास्ते उनके ज्ञान में गुण कर्म की जरूरत नहीं। जैसे ‘‘संख’’ सफेद है इस अवसर पर संख जो द्रव्य है, उसमें यह विशेष्य समवाय सम्बन्ध से रहते हैं। इस वास्ते संख के ज्ञान में उसकी आवश्यकता है, किन्तु कर्म में कोई विशेषता नहीं रहती, क्योंकि विशष्य के साथ विशिष्ट वस्तु का ज्ञान ही विधि ज्ञान का कारण है। इस वास्ते स्पष्ट प्रतीत है, कि गुण कर्म में गुण के समवाय सम्बन्ध से न रहने से उसकी आवश्यकता नहीं।
प्रश्न- गौ घंटेवाली है। इस स्थान में द्रव्य के ज्ञान में द्रव्य की आवश्यकता है। इसी प्रकार खंभा है और यह घड़ा है। इस अवसर पर द्रव्य की विशेषता जानने में द्रव्य का जानना कारण है। जिस स्थान पर प्रथम द्रव्य का ज्ञान न हो तो वहां किस प्रकार द्रव्य का ज्ञान होगा?