सूत्र :सामान्यविशेषापेक्षं द्रव्यगुणकर्मसु 8/1/6
सूत्र संख्या :6
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : द्रव्य गुण कर्म में जो द्रव्य, गुण, कर्म का अस्तित्व से चुनी हुई व्रद्धि अर्थात् विशिष्ट ज्ञान के साथ इन्द्रिय और वस्तु के सम्बन्ध उत्पन्न होता है। उसमें सामान्यता और विशेषता की आवश्यकता अवश्य होती है। वह बिना आवश्यकता उत्पन्न नहीं होता, क्योंकि यह द्रव्य है, यह गुण है, यह कर्म है यह विशिष्ट ज्ञान अपनी उत्पत्ति के वास्ते जरूरत रखता है। बिना जरूरत उत्पन्न नहीं होता यह तात्पर्य है।
प्रश्न- क्या द्रव्य में भी सामान्य और विशिष्ट की आवश्यकता ही से ज्ञान होता है?