सूत्र :गुणकर्मसु संनिकृष्टेषु ज्ञाननिष्पत्तेर्द्रव्यं कारणम् 8/1/4
सूत्र संख्या :4
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : रूपादि गुण, और उत्क्षेपणादि कर्मों में जो ज्ञानउत्पन्न होता है उसमें द्रव्य कारण है। गुण और कर्म द्रव्य में उत्पन्न होता है उसमें द्रव्य कारण हैं। गुण और कर्म द्रव्य में उत्पन्न ही अनुभव होते हैं। बिना द्रव्य के अकेले गुण कर्म का ज्ञान कहीं नहीं होता। द्रव्य का अनुभव योग्य होना भी कारण है। यदि द्रव्य अनुभव योग्य न हो तो उसके गुण और कर्म अनुभव नहीं कर सकते। उनका द्रव्य में ही इन्द्रियों से सम्बन्ध होता है। यद्यपि कपूर और चन्दनादि के छोटे-छोटे परमाणुओं से भी सुगन्धि का अनुभव करते हैं, किन्तु तो भी उसमें इतना द्रव्य अवश्य है कि उसको अनुभव कर सकें यद्यपि शब्द के मालूम करने में द्रव्य अनुभव योग्य नहीं है तो भी द्रव्य में रहता हुआ ही शब्द मालूम होता है। आकाश से पृथक् शब्द का ज्ञान नहीं हो सकता।
व्याख्या :
प्रश्न- जो सम्बन्ध प्रत्यक्ष नहीं। उसकी कल्पना क्यों करते हैं?
उत्तर- ज्ञान की उत्पत्ति में कार्य से ही कारण का मानना आवश्यक है, क्योंकि बिना कारण के कार्य होता ही नहीं ज्ञान के उत्पन्न होने की और विधि बतलाते हैं।