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वैशेषिक दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Anhwik

Shlok

सूत्र :सामान्यविशेषेषु सामान्यविशेषाभावात्तदेव ज्ञानम् 8/1/5
सूत्र संख्या :5

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : सामान्य और विशेष्य द्रव्य गुण अैर कर्म में स्थित अस्तित्व जो उनकी सत्ता को (मखसूस) करता है। चुनता है। फिर उन द्रव्य गुण कर्म में भूमि, जल आदि में रहने वाला अस्तिव जो सामान्य द्रव्यों से चुनता है। इस अवसर पर द्रव्य में स्थित सामान्यता और आधार की विशेषता से और उसके सम्बन्ध से समवाय सम्बन्ध से सम्पूर्ण इन्द्रियों के गुण के ज्ञान होने से संकेत समवाय सम्बन्ध से ज्ञान की उत्पत्ति होती है। तात्पर्य यह है सामान्य और विशेष में सामान्य विशष के न होने से ज्ञान की उत्पत्ति होती है। जो द्रव्य अपने द्रव्यत्व है वही सत्ता की अपेक्षा विशेप है। इस वास्ते सत्ता के अतिरिक्त और कोई वस्तु सामान्य नहीं। सामान्य और विशेष अपेक्षा से होता है यह अपेक्षा ज्ञान से सम्बन्ध रखती है, इस वास्ते बतलाया, कि ज्ञान इस प्रकार भी उत्पन्न होता है। प्रश्न- क्या जिस प्रकार सामान्य और विशेष में सामान्य और विशेष के न होने से बिना दूसरे को आवश्यकता से ज्ञान होता है। ऐसे ही द्रव्य गुण कर्म में भी बिना आवश्यकता के ज्ञान होता है।