सूत्र :द्रव्येषु ज्ञानं व्याख्यातम् 8/1/1
सूत्र संख्या :1
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अब इस आठवें अध्याय में बुद्धि अर्थात् की जांच करते हैं क्योंकि आत्मा के साधन के समय बुद्धि का वर्णन हुआ है अब उसकी जांच करते हैं।
द्रव्ययेषु ज्ञानं व्याख्यातम् ।।1।।
अर्थ- द्रव्यों में ज्ञान बतलाया गया है अर्थात् जो विषयों को ग्रहण करने वाली बुद्धि है उसका वर्णन तृतीय अध्याय में आ चुका है और ज्ञात रहे, कि बुद्धि, उपलब्धि और ज्ञान ये पर्याय वाचक शब्द हैं।
व्याख्या :
प्रश्न- महात्मा मनु ने लिखा हैं, कि बुद्धि ज्ञान से शुद्ध होती हैं। जिससे स्पष्ट प्रतीत होता हैं कि ज्ञान का नाम नहीं क्योंकि ज्ञान गुण और सांख्य दर्शन में भी बुद्धि को प्रकृति कार्य अर्थात् द्रव्य माना है।
उत्तर- महात्मा मनु ने ज्ञान शब्द का अर्थ वेद लिया है, जिसका तात्पर्य यह है, कि जीव की बुद्धि अर्थात् वेद से शुद्ध होता है। जीवात्मा की बुद्धि और ज्ञान एक ही है। सांख्यदर्शन में बुद्धि गुण है। महत् नाम मन का था। जिसका अशुद्ध अर्थ बुद्धि करके भेद कर दिया देखो-सांख्य दर्शन अ०सू०71।
प्रश्न- कोई बुद्धि को नित्य मानते हैं कोई अनित्य उसका कारण है?
उत्तर- बुद्धि अर्थात् ज्ञान दो प्रकार का है। 1. स्वाभाविक 2. नैमित्ति। स्वाभाविक तो जीवात्मा का धर्म और नित्य है और नैमित्तिक, अन्तःकरण अर्थात् मन की वृत्ति और अनित्य है। जिस शास्त्र में बुद्धि को अनित्य बतलाया हो, वहरां समझ लेना चाहिये, कि शास्त्रकार नैमित्तिक ज्ञान का वर्णन कर रहे हैं और तहां नित्य बतलाया हो, वहां स्वाभाविक का वर्णन, ऐसा विचार कर लेना चाहिये। अब इसके आगे बुद्धि के भेद कहते हैं।