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वैशेषिक दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : वैशेषिक दर्शन
 
Language

Darshan

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सूत्र :कारणसामान्ये द्रव्यकर्मणां कर्मा-कारणमुक्तम् इति प्रथम आह्निकः1/1/31
सूत्र संख्या :31

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : सामान्य कारण के बयान में द्रव्य और इनका कारण कर्म हो सकता है यह वर्णन किया गया है, परन्तु नितान्त ही कारण न होने का खण्डन नहीं किया गया क्योंकि वह संयोग विभाग आदि गुणों को कारण है। अतः द्रव्य और कर्म को छोड़कर गुणों का कारण हो सकता है।

व्याख्या :
प्रश्न- इस सूत्र में इस बात के वर्णन की आवश्यकता ही नहीं थी क्योंकि पहले सूत्र में कर्म को गुणों का कारण सिद्ध करचुके हैं। उत्तर- इस सुत्र से यह भी ज्ञात होता है कि सामान्यतया कर्म द्रव्य कर्मों का कारण नहीं है, किन्तु किसी विशेष अवस्था में कारण हो सकता है। जैसे कर्म संयोग विभाग कारण है और संयोग विभाग द्रव्य की उत्पत्ति के कारण हैं, इसलिए जैसे परम्परा से दादा पोते की उत्पत्ति का कारण है, कर्म भी द्रव्य की उत्पत्तिका कारण हो सकता है। जिस प्रकार यह सम्भव है कि दादा पोते की उत्पत्ति के समय मर जावे तो उत्पत्ति से पूर्व विद्यमान न होने काम कारण नहीं, परन्तु यदि दादा न हो तो बाप की उत्पत्ति न हो और बाप न हो तो बेटा भी न हो। इस प्रकार से दादा पोते की उत्पत्ति का कारण है इसी प्रकार कर्म भ्ज्ञी परम्परा से द्रव्य की उत्पत्ति का कारण है कर्म कर्म का भी विशेष अवस्थाओं में कारण हो सकता है। जैसे घोड़े के चलने से गाड़ी चलती हैं। यहां घोड़े का चलना जो कर्म है वह गाड़ी का कारण कर्म नहीं? प्रश्न- फिर यह क्यों कहा कि कर्म के चलने का कारण है। उत्तर- घोड़े का चलना घोड़े में और गाड़ी का चलना गाड़ी में पृथक्-पृथक् है इसलिए उनमें कारण और कर्म का सम्बन्ध नहीं हो सकता, किन्तु गाड़ी के चलने का कारण गाड़ी और घोड़े का संयोग है। यदि संयोग न हो तो बिना घोड़े के अकेली गाड़ी चल सकती। और यदि घोड़े जुड़े भी हों और चले नहीं तो गाड़ी में चलना नहीं होगा, अतः किसी विशेष अवस्था में कर्म-कर्म का कारण कहा जा सकता है सामान्यतया नहीं। प्रथम अध्याय का प्रथम आह्निक समाप्त हुआ